भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
429 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:05, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
उन्हां छुटदियां हाल पुकार कीती पंजसत मुशटंडियां आ गईयां
वांग काबली कुतियां गिरद होइयां दा दा अलल-हिसाब<ref>क्रमवार</ref> लगा गईयां
उन्हां अक के धक्के रख अगे घरों कढ के ताक चढ़ा गईयां
धके दे के सट पलट उसनूं होड़ा बड़ा मजबूत फसा गईयां
बाज तोड़के ताबयों<ref>शिकार</ref> लाहयों ने माशूक दी दीद हटा गईयां
सूबेदार तगयार<ref>तबदील</ref> नूं ढा छठया वडा जोगी नूं वायदा पा गईयां
अगे वांग ही नवीयां फिर होइयां वेख भड़कदी ते तेल पा गईयां
घरों कढ अरूडी तेसुटया ने बहिश्तों कढ के दोजके पा गईयां
जोगी मसत हैरान हो दंग रहया केहा जादूड़ा घोल पिला गईयां
अगे ठूठे नूं झूरदा खफा हुंदा उते होर पसार बना गईयां
वारस शाह मियांनवां सिहर<ref>जादू</ref> होया परियां जिन्न फरिशते नूं ला गईयां
शब्दार्थ
<references/>