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433 / हीर / वारिस शाह

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मैंनूं रब्ब बाझों नहीं तांघ काई सभ डंडियां<ref>राह</ref> गमां ने मलियां नी
जिथे सिंह बुकन शूकन नाग काले बघयाड़ घतन नित जलियां<ref>नाचना</ref> नी
सारे देस ते मुलक दी सांझ टुटी साडियां किसमतां जंगलीं चलियां नी
चिला<ref>चालीस दिन</ref> कट के पढ़ां कलाम डादी भीड़ां वजियां आन अवलियां नी
कीतियां मेहनतां आशकां दुख झागे रातां जांदियां हैन अकलियां नी

शब्दार्थ
<references/>