भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

436 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल फिकर ने घेरया बंद होया रांझा जीऊ गोते लख खा बैठा
हथों हूंझ धुआं सिर चा टुरया काले बाग विच ढेर मचा बैठा
अखीं मीटके रब्ब दा धयान धरया चारों तरफ ही धूनियां ला बैठा
वट मारके चारों तरफ उची उथे वलगना<ref>घेरना</ref> खूब बना बैठा
असां कूच कीता रब्ब सच करसी एट आख के डील जगा बैठा
भड़की अग जां ताओ ने ता कीता इशक मुशक विहायके जा बैठा
विच संघनी छां दे ला ताड़ी वांग बड़े तपसियां आ बैठा
वारस शाह उस वक्त नूं झूरदा ए जिस वेले अखियां ला बैठा

शब्दार्थ
<references/>