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436 / हीर / वारिस शाह
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दिल फिकर ने घेरया बंद होया रांझा जीऊ गोते लख खा बैठा
हथों हूंझ धुआं सिर चा टुरया काले बाग विच ढेर मचा बैठा
अखीं मीटके रब्ब दा धयान धरया चारों तरफ ही धूनियां ला बैठा
वट मारके चारों तरफ उची उथे वलगना<ref>घेरना</ref> खूब बना बैठा
असां कूच कीता रब्ब सच करसी एट आख के डील जगा बैठा
भड़की अग जां ताओ ने ता कीता इशक मुशक विहायके जा बैठा
विच संघनी छां दे ला ताड़ी वांग बड़े तपसियां आ बैठा
वारस शाह उस वक्त नूं झूरदा ए जिस वेले अखियां ला बैठा
शब्दार्थ
<references/>