भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

439 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आकी हो बैठे असीं जोगीअड़े जाह ला लै जोर हो लावना ई
असी हुसन ते हो मगरूर बैठे चार चशम दा कटक लड़ावना ई
लख जोर तूं ला जे लावना ए असां बदीयों बाझ ना आवना ई
सुरमा अखियां दे विच पा के ते असां वडा घमंड दखावना ई
रुख देके यार पयारड़े नूं सैदा रांझे दे नाल लड़ावना ई
ठंडा होए बैठा सैदा वांग दहसर<ref>रावण</ref> सोएन लंक नूं उस लुटावना ई
रांझे कन्न पड़ायके जोग लया असां जजीया जोग ते लावना ई
वारस शाह बाग विच जा बैठा असां हासला बाग दा पावना ई

शब्दार्थ
<references/>