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440 / हीर / वारिस शाह

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आकी होयके खेड़यां विच वड़ीए आशक हुसन दे वारसी जटीए नी
पिछा अंत नूं देवना होय जिसनूं झुगा उसदा कासनूं पटीए नी
जेहड़ा वेखके मुख निहाल होवे कीजे कतल ना हान पलटीए नी
एह आशक वेल अंगूर दी ए मुढ़ों एसनूं ला पटीए नी
एह जोबना नित ना होवना ए पैर यार दे धोयके चटीए नी
लैके सठ सहेलियां विच बेले तूं ते धांवदी सैं नित जटीए नी
पिछा ना दीजे सचे आशकां नूं जो कुझ जान ते बने सो कटीए नी
दावा बन्नीए ते खड़यां हो लड़ीए तीर मारके पिछां ना हटीए नी
अठे पहर वसारीए नहीं साहिब कदे होश दी अख तरटीए नी
जिन्हां कौंत भुलाया छुटडां ने लख मौलियां महिंदीयां घतीए नी
वारस चाट तोतड़ें<ref>तोता</ref> नूं पिछों कंकरी रोड़ ना सटीए नी

शब्दार्थ
<references/>