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449 / हीर / वारिस शाह

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सहती आखया पेट ने खुआर कीता कणक खा बहिश्त थी कढया ए
आई मैल तां जनत तों मिले धके रसा आन उमैद दा वढया ए
आख रहे फरिशते कणक दाना नहीं खावना हुकम कर छडया ए
सगों आदम ने हव्वा नूं खुआर कीता साथ उसदा एस ना छडया ए
वारस किसे दा असां ना बुरा कीता ऐवें नाम जहान तों छडया ए

शब्दार्थ
<references/>