भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
451 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिस मरद नूं शरम न होवे गैरत उस मरद तों चंगियां तीवियां ने
घर सदा ई औरतां नाल सोंहदा शरमवंदते तरदियां बीवियां ने
इक हाल थी मस्त घरबार अदर इक हार शिंगार विच खीवियां ने
वारस हया<ref>शर्म</ref> दी पहन चादर अखों नाल जमीन दे सीवियां<ref>गड़ जाना</ref> ने
शब्दार्थ
<references/>