भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
454 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:19, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सच आख रन्ने केही धुमां पाइयां तुसां भोज राजा लती कुटया जे
दहसिर मारया भेत घरोगडे<ref>घर के</ref> दे सने लंका दे उस नूं पुटया जे
कैंरों पांडवां दे कटक कई कूहनी मारे तुसां दे सभ नखुटया जे
कतल होए इमाम करब्बलां अंदर मार दीन वे वारसी सुटया जे
जो कोई शरम हया थी आदमी सी सने जात ते माल दे पुटया जे
वारस शाह फकीर तां नस आया पिछा उसदा कासनूं घुटया जे
शब्दार्थ
<references/>