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476 / हीर / वारिस शाह

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चैधराइयां छड के चाक बनयां मही चार के अंत नूं चोर होए
कौल कवारियां दे लोहड़े मारियां दे उधल हारियां दे वेखो होर होए
मां बाप करार कर कोल हारे कम्म खेढ़यां दे जोरों जोर होए
राह सच दे ते कदम धरन नाहीं जिन्हां खोटयां दे दिल खोर होए
तेरे वासते मिले हां कढ देसों असीं अपने देस दे चोर होए
वारस शाह ना अकल ते होश रहियां मारे हीर दे सेहर दे मोर होए

शब्दार्थ
<references/>