भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

480 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:56, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुसी मेहर करो असीं घरी जाईए नाल सहती दे डाल बनाईए जी
बहर<ref>समुद्र</ref> इशक दा खुशक गम नाल होया नाल अकल दे मीह वरसाईए जी
किवें करां मैं कोशशां अकल दियां तेरे इशक दियां पूरीया पाईए जी
जां तयारियां टुरन दियां झब करिए असीं सजनों हुकम कराईए जी
हजरत सूरत इखलास<ref>कुरान की एक सत्र</ref> लिख दयो मैंनूं कुर्रा<ref>ज्योतिष</ref> फाल<ref>पासा फैंकना</ref> नजूम दा पाईए जी
खोल फाल-नामा ते दीवान हाफज वारस शाह तों फाल कढाईए जी

शब्दार्थ
<references/>