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481 / हीर / वारिस शाह

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अवल पैर पकड़े एतकाद कर के फेर नाल कलेजे दे लग गई
नवां तौर अजूबे दा नजर आया वेखो जाल पतंग ते अग गई
कही लग गई, चिंनग जग गई, खबर जग गई वज तलग गई
यारो ठगां दी रेवडी हीर जटी मुंह लगदयां यार नूं ठग गई
लगां मसत हो कमलियां करन गलां दुआ किसे फकीर दी वग गई
अगे धूंआं धुखंदड़ा जोगीड़े दा उतों फूक के छोकरी अग गई
यार यार दा बाग विच मेल होया गल हिजर दी दूर अलग गई
वारस टुटयां नूं रब्ब जोड़दा ए वेखी कमले नूं परी लग गई

शब्दार्थ
<references/>