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492 / हीर / वारिस शाह

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भाबी अखियां दा रंग रतवना तैनूं हुसन चड़या अनआंवदा नी
अज धिआन तेरा असमान उते तैनूं आदमी नजर ना आंवदा नी
तेरे सुरमे दियां धाड़ियां धूड़ पइयां जिवे कटक है माल तें आंवदा नी
राजपूत मैदान विच लढ़न तेगां अगे ढाडीयां दा पुत्तर गांवदा नी
रूख होर दा होर अज दिसे तेरा चाला नवां कोई नवां आंवदा नी

शब्दार्थ
<references/>