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493 / हीर / वारिस शाह

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मुठी मुठी मैंनूं कोई असर होया अज कम्म ते जियो ना लगदा नी
भुली विसरी बूटी मैं लंघ गई इके पया भुलावड़ा ठगदा नी
तेवर लाल दिसे मैंनूं अज खेड़या दा जिवें लगे अलमड़ा<ref>लाबू</ref> अगदा नी
मैंनूं याद आए मैंनूं सोई सजन जैदा मगर उलांवड़ा जगदा नी
खुल खुल जांदे बंद चोलड़ी दे अज गल मेरे कोई लगदा नी
घर बार विचों डर आंवदा ए जिवे किसे ततारचा<ref>लुटेरा</ref> अगदा नी
इक जोवने दी नईं<ref>नदी</ref> अज ठाठ दिता बूबन<ref>झाग का एक टुकड़ा</ref> आवदा पानी ते झगदा नी
वारस शाह बला ना मूल सानूं मैंनूं भला नहीं कोई लगदा नी

शब्दार्थ
<references/>