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496 / हीर / वारिस शाह
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साह काला ते होठां ते लहू लगा किसे नीली नूं ठोकरां लाइयां नी
किसे हो वेदरद लगाम दिती अडियां वखियां विच चुभोइयां नी
ढिला होए के किसे मैदान दिता, लाइयां किसे महबूब सफाइया नी
वारस शाह मियां होनी हो रही हुन केहियां रिंकतां<ref>झगड़ा</ref> चाइयां नी
शब्दार्थ
<references/>