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503 / हीर / वारिस शाह

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अनी भरो मुठी हाय हाय मुठी एस बिरहों दे ढिड विच सूल होया
लहर पेढूयों उठ के पवे सीने मेरे ढिड दे विच डंडूल<ref>दर्द</ref> होया
तलब डुब गई सरकार मेरी मैंनूं इक न दाम वसूल होया
लोक नफे दे वासते लैन तरले मेरा मन वही चैढ़ मूल होया
अम्ब बीज के दुध दे नाल पाले वी तती दे अंत बंबूल<ref>किकर</ref> होया
खेढ़यां विच ना परचदा जिउ मेरा शाहद<ref>गवाही</ref> हाल दा रब्ब रसूल होया

शब्दार्थ
<references/>