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509 / हीर / वारिस शाह

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पिहढ़े घतके कदी न बहे बूहे असीं एहते दुख विच मरांगे नी
एहदा जिउना पलमदा पिंड साडे असीं एह इलाज की करांगे नी
सोहनी रन्न बाजार ना वेचनीए वयाह पुत दा होरद करांगे नी
मुलां वैद हकीम लै जान पैसे कहियां चटियां गैब दियां भरांगे नी
वहुटी गभरू दोहां नूं बाढ़ अंदर असी बाहरों जंदरा जड़ां नी
सैदा ढाह के एस तों लए लेखा असी चीकनों मूल न डरांगे नी
शरमिंदगी जग दी सहागे जरा मुंह परां नूं होर दे करांगे नी
कदी चरखड़ा डाह ना छोप कते असी मेल भंडार की करांगे नी
वारस शाह शरमिंदगी एस दी तों असीं डुब के खूह विच मरांगे नी

शब्दार्थ
<references/>