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516 / हीर / वारिस शाह

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वकत फजर<ref>सवेरे</ref> दे उठ सहेलियो नी तुसां अपने आहरी ही आवना जे
माऊ बाप नूं खबर ना करो काई भुलके बाग नूं पासनां लावना जे
वहुटी हीर नूं बाग लै चलना जे जरां एस दा जीउ वलावना जे
लावन फरनि विच कपाह भैनां किस पुरूष नूं नही वखावना जे
राह जादियां नूं पुछन लोक अड़ियो कोई इफतरां<ref>नकल, स्वांग</ref> चा बनावना जे
खेडो समीयां ते ततो पबीयां<ref>पंजाब के लोक-नाच</ref> नि भलक खूह नूं रंग लगावनां जे
वड़ो वट लगोटड़े विच पैली बन्ना वट सभ पुट वखावना जे
बन्ह झोलियां चुनो कपाह सभ ते मुदासयां रंग सहावना जे
वडे रंग सोहन इको जेडियां दे राह जांदयां दे सांग लावना जे
चरखे चाए भरोटड़े<ref>बोहिआं</ref> कज उठो किसे पूनि नूं हथ लावना जे
वारस शाह मियां एहो अरथ होया सभनां अजूदे फलेनूं जावना जे

शब्दार्थ
<references/>