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513 / हीर / वारिस शाह
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जाय मंजयों उठ के किवे तिलके हीर पैर हलायक चुसत होवे
वांग रोगियों रात दिनरह ढठी किव हीर बीबी तंदरूसत होवे
एह वडा अजाब<ref>दुःख</ref> हैं मापयां नूं नुंह धी बूहे उते सुसत होवे
वारस शाह मियां क्यों ना हीर बोले सहती जेहियां दी जिन्हां नु पुशत<ref>सहायता</ref> होवे
शब्दार्थ
<references/>