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521 / हीर / वारिस शाह

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हीर मीट के दंद बेसुध पई सहती हाल ते शोर पुकारया ए
काले नाग ने फन फला वडा डंग वहुटी दे पैर नूं मारया ए
कुड़ियां वांग किती<ref>दुहाई देना</ref> आ गई बाहर लोको कम्म ते काज विसारया ए
मंजे पायके हीर नू घरी आंदा जटी पीलड़े रंग नूं हारया<ref>पीली हो गई</ref> ए
वेखो फारसी तोड़के नजम नसरों एह मकर घिउ वांग नतारयाा ए
अगे किसे किताब विच नहीं पढ़या जेहा खचरियां खचर पसारया ए
शैतान ने आन सलाम कीती तुसां जितया ते असां हारया ए
अफलातून दी रीस<ref>दाड़ी</ref> मकराज<ref>कैंची से काट दी</ref> कीती वारस कुदरतां वेखके वारया ए

शब्दार्थ
<references/>