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525 / हीर / वारिस शाह

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इस पद्य में संपों की बहुत सारी किस्मों का ब्यान है

सहती आखया फरक ना पवे मासा ए सप ना कील ते आंवदे ने
काले बाग विच जोगीड़ा सिध दाना जिदे कदम पया दुख जांवदे ने
बाशक नाग करूंडीए मेद तछक छिबे तितरे सीस निवांवदे ने
कलगीदार ते उडना भूंड नाले असराल खराल डर खांवदे ने
तेपूरड़ा बूरड़ा फनी फनियर सब आन के सीस निवांवदे ने
मनीदार ते सिरे खड़बीए भी मंतर पढ़े ते कील ते आंवदे ने
घंगूरियां दामियां बस बसाती रतवाड़ियां कोझियां छांवदे ने
खंजूरिया तेलिया बनत करके चंगा फनवारिया कोइ चा चांवदे ने
काई दुख ते दरद ना रहे भोरा जादू जिन्न ते भूत सब जांवदे ने
मिले उस नूं कोई ना रहे रोगी दुख कुलां दे उस तों जांवदे ने
राव राज ते देवते वैद परियां सब उस तों हथ वखांवदे ने
होर वैदगी वैद लगा थके वारस शाह होरी हुण आंवदे ने

शब्दार्थ
<references/>