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531 / हीर / वारिस शाह

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चुप हो जोगी सहज बोलया ए जटा कास नूं पकड़यो काहियां नूं
असीं छड जहान फकीर होए एहनां दौलतां ते बादशाहियां नूं
याद रब्ब दी छड कके करन झेडे ढूंढ़न उडदियां छड के फाहियां नूं
तेरे नाल ना चलियां नफा कोई मेरा इलम ना फुरे वियाहियां नूं
रन्न सचियां नूं करन चा झूठे रन्नां कैद करांदियां राहियां नूं
वारस कढ कुरान ते बहें मिंबर<ref>बनेरा</ref> केहा अडयो मकर दियां फाहियां नूं

शब्दार्थ
<references/>