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541 / हीर / वारिस शाह
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चलीं जोगिया रब्ब दा वासता ई असीं मरद नूं मरद ललकारने हां
जो कुझ सरे सो लै नजर पैर पकड़ां जान माल परवार भी वारने हां
पया कलह दा कोडमां सभ रोंदा असी काग ते मोर उडारने हां
हथ बन्हके बेनती जोगिया वे असी आजजी नाल पुकारने हां
चोर सदया माल दे सांभणे नूं तेरियां कुदरतां तों बलिहारने हां
वारस शाह वसाह की एस दम दा ऐवें रायगां<ref>फजूल</ref> उमर क्यों हारने हां
शब्दार्थ
<references/>