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546 / हीर / वारिस शाह
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सहती कुड़ी नूं सदके सौंपिओ ने मंजी विच ऐवान<ref>घर, मकान</ref> दे पाय के ते
पिंडों बाहर इक डूंमां<ref>मरासी</ref> दी कोठड़ी सी ओथे दिती ने थां बनायनके ते
जोगी पलंघ दे पास बहायओ ने आ बैठा ई शगन मनायके ते
नाढू शाह बनया मसत हो आशक माशूक नूं कोल बहायके ते
खेड़े आप जा घरी बेफिर सुते तामा<ref>शिकार</ref> बाज दे हथ फड़ायके ते
ओहनां खेह सिर घतके पिटना ए जिन्हां विआही सी धड़ी बनायके<ref>बाल गूंद कर</ref> ते
वारस शाह फिर तिन्हां ने वैन करने जिन्हां विआहियों घोड़ियां गाय के ते
शब्दार्थ
<references/>