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557 / हीर / वारिस शाह

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राजे हुकम कीता चढ़ी फौज बांकी आ राह विच घेरयो खेड़यां नूं
तुसी हो सिधे चलो पास राजे छड दयो खां छलां<ref>धोखा</ref> झेड़या नूं
सानूं हुकम जो चोर न जान पाए चलो छडो दुखां दयां फेड़यां नूं
पकड़ विच हजूर दे लिआए हाजर राहजनां<ref>लुटेरे</ref> ते खेहरयां भेड़यां नूं
बन्न खड़ांगे इक ते आप चलो नहीं जाणदे असीं बखेड़यां नूं
वारस शाह चन्न सूरजां ग्रहन लगे ओह फड़े ने आपने फेड़यां नूं

शब्दार्थ
<references/>