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559 / हीर / वारिस शाह

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खेड़यां जोड़के हथ फरयाद कीती नहीं वकत हुण जुलम कमावने दा
एह ठग जे महजरी<ref>अडंबरी</ref> बड़ा खोटा सेहर जानदा सरहों जमावने दा
वेहड़े वड़दयां नढियां मोह लैंदा इस नूं इलम जे रन्न वलावने दा
साडी नूंह नूं इक दिन सप्प लड़या ओह वकत सी मांदरी लयावने दा
सहती दसया जोगिड़ा वांग काल ढम जानदा झाड़या पावने दा
मंतर झाड़े नूं असां ने सद आंदा सानूं कम सी जिंद बचावने दा
लै के दोहां नूं रातों ई रात नठा फफर वली अला फेरा पावने दा
विचों चोर ते बाहरों साध दिसे इसनूं वल जे भेख वटावने दा
राजे चोरां ते यारां नूं मार देनी सूली रसम है चोर चढ़ावने दा
भला करे ते एहनूं मार टिे हुकम आया है चोर मुकावने दा
वारस शाह बेअमल चाकरी कोई रब्बा रखां आस मैं फजल करावने दा

शब्दार्थ
<references/>