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568 / हीर / वारिस शाह
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रांझा आखदा जाह की वेखनी ए बुरा मौत थीं इह विजोग है नी
पए धाड़वी लुट लै चले मैंनूं इह दुख की जानदा लोग है नी
मिली रांझे नूं हीर ते सवाह मैंनूं तेरे नाम दा असां नं रोग है नी
बुकल लेफ दी जफियां वहुटियां दियां एह रुत सयाल दा भोग है नी
शौकन रंन गवांढ कपतयां दा भले मरद दे बाब<ref>बस में होना</ref> दा रोग है नी
खुशी किव होवन मरद फुल वांगूं घरी जिन्हां दे नित दा सोग है नी
तिन्हां विच जहान की मजा पाया गल जिन्हां दे रेशटा<ref>श्राप</ref> जोग है नी
जेहड़ा बिनां खुराक दे करे कुशती ओस मरद नूं जानिए फोग है नी
आसमान ढह पवे ते नहीं मरदे बाकी जिन्हां जहान ते चोग है नी
कूंज कां नूं मिले ते शोर पैंदा वारस शाह एह धुरों संजोग है नी
शब्दार्थ
<references/>