Last modified on 5 अप्रैल 2017, at 15:48

576 / हीर / वारिस शाह

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:48, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लै के चलया अपने देस वले चल नढिए रब्ब दिवाई ए नी
चैधरानिए तखत हजारे दिए पंजां पीरां नूं वत घिणाईए नी
कढ खेड़यां तों रब्ब दिती ए तूं अते मुलक पहाड़ पहुंचाईए नी
हीर आखया ऐव जे जा वड़सां रन्नां आखसन उधली आईए नी
घत जादुड़ा देयों ने परी ठगी हूर आदमी दे हत्थ आईए नी
वारस शाह परेम दी जड़ी घती मसतानड़ी चा बनाईए नी

शब्दार्थ
<references/>