भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

580 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रांझे जायके घरी अराम कीता गंढीं-फेरियां<ref>विवाह की भाजी</ref> सू विच भाइयां दे
सारा कोड़मा आयके गिरद होया बैठा पंच हो विच भरजाइयां दे
चलो भाईयो वयाह के हीर लयाईए सयाल लई हुनाल दुआइयां दे
जंज जोड़ के रांझे ने तैयार कीती टमक चा बधो मगर नाइयां दे
बाजे दखनी धरगां<ref>ढोलक</ref> दे नाल वजन लख संग छटन सिर नाइयां दे
वारस शाह विसाह की जिंदगी दा बंद बकरा दसत<ref>हाथ में</ref> कसाइयां दे

शब्दार्थ
<references/>