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581 / हीर / वारिस शाह

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सयालां बैठ के सब विचार कीती भले आदमी गैरतां पाल दे नी
यारो गल मशहूर जहान उते सानूं मेहने हीर सयाल दे नी
पत रहेगी ना जेकर तोर दईए नढी नाल मुंढे महीवाल दे नी
कबर विच दऊस खंजीर होसन जेहड़े लाड करदे धन माल दे नी
औरत आपणी कोल जो गैर वेखन गैरत करन ना ओसदे हाल दे नी
मूंह तिन्हां दा वेखनां खूक<ref>सूअर</ref> वांगू कतल करो रफीक जो नाल दे नी
सयद शेख नूं पीर ना मूल जानो अमल करन जे उह चंडाल दे नी
होवे चूहड़ा तुरक हराम खावे मुसलमान वस उसदे नाल दे नी
दौलत मंद दऊस<ref>दुष्चरित्र</ref> दी तरक सुहबत मगर लगिए नेक कंगाल दे नी
कदी कचकड़ां लाल ना होए जांदा जे परो दईए नाल लाल दे नी
जहर दे के मारिए हीर ताई गुनाहगार जो जुल जलाल<ref>ताकतवर</ref> दे नी
मार सुटया हीर नूं मापयां ने एह पखने उस दे खयाल दे नी
बद अमलियां जेहड़ियां करें चोरी महरम सभ तेरे वाल वाल दे नी
सानूं जनती साथ रवालना जे असां आसरा फजस कमाल दे नी
जेहड़े दोजखीं बन्ह के टोरनोगे वारस शाह फकीर दे नाल दे नी

शब्दार्थ
<references/>