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582 / हीर / वारिस शाह

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हीर जान-बहक तसलीम<ref>देहांत</ref> होई उन्हां दफन कर खत लिखाया ई
वली गौस ते कुतब सब खतम होए मौत सच है रब्ब फरमाया ई
असां सबर कीता तुसां सबर करना हुकम इनाकामईलुन आया ई
कुला शैई खलाकुने इलाबजाहु हुकम विच कुरान दे आया ई
असां होर उमैद सी होर रोई खाली जा उमैद फरमाया ई
रजा कतइ टले ना कदी हरगिज लिख आदमी तुरत भजवाया ई
डेरा पुछ के धीदो जा वड़या खत रोए के हथ फड़ाया ई
हुन माजूल<ref>भाव मर गई</ref> होयों तखत जिंदगी<ref>जीवन से</ref> तों तैनूं हुकम तगइयर<ref>परिवर्तन</ref> दा आया ई
मेरे माल नूं खैर है कासदा ओए आख कासनूं डुसकना लाया ई
तेरे माल नूं धाड़वी ओह पया जिस तों कदी नां किसे छुड़ाया ई
हीर मोई नूं अठवां पहर होया मैंनूं सयालां ने अज भजवाया ई
वारस शाह मियां गल ठीक जाणी तैथों कूच दा आदमी आया ई

शब्दार्थ
<references/>