भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपने मनऽ सें / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:49, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जागऽ जागऽ हो किसान भैया अपने मनऽ सं
आपने मनऽ सं हो भैया आपने मनऽ सं।
जागऽ-जागऽ हो...।

सब किसान मिली खेती करबै, बुनबै गेहूॅ-धनमा
दाल-रोटी भरपेट खाइकं, होली मं गैबैं गनमा
भूट्ठा खेतऽ मं मचनमा आपने मनऽ सं।
जागऽ-जागऽ हो...

सुबहे जगबै, रात केॅ सूतबै, दिन भर करबै काम
मेहनत सेॅ हम्में नैं डरबै, लहू बहै चाहे घाम,
हमरऽ खेते बाबा धाम भैया आपने मनऽ सं
जागऽ-जागऽ हो...।

आब नै सहबै हम्मं भैया विदेशी अपमान
जनसंख्या पर रोक लगैबै दूयेगो सन्तान
दोनों पढ़तै सुबहो-सॉझ, भैया आपने मनऽ सं
जागऽ-जागऽ हो...

आतंकी सेॅ गाँव-शहर मं फैली गेलै दंगा
रोक लगावऽ हेकरा पेॅ सब तभीये रहभे चंगा
बोलऽ-बोलऽ इन्कलाब भैया आपने मनऽ से
जागऽ-जागऽ हो...।