भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तीनतसिया / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:00, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अदालत तेॅ बनलऽ छै छुच्छे तमाशा
मुदैय आरू मुजरिम के बनलै जनवासा।
वकील आरू मुंशी के मुहऽ मेॅ पानी
देखी कं गहकी के डारा मेॅ रासा।
चाय, पान, होटल आरू भेन्डर बाला,
टायपिस्ट साथें बजाबै छै तासा।
बैठलऽ छै बनिया झट धरै लेॅ बन्हकी,
घड़ी, साईकिल, बर्तन स्टील की कासा।
होकरौ पेॅ तीनतसिया पीछू पड़ल छै,
केन्हों फसाबै लं फेकै छै पासा।
जेकरा नै बचलऽ छै बेचै लेॅ कुच्छू,
होकरा छै आबे भगवाने पेॅ आशा।
अदालत तेॅ बनलऽ छै छुच्छे तमाशा।