पूछें नै मनऽ के बात / खुशीलाल मंजर
हे गे सखि पूछैं नै मनऽ के बात
की कहियौ केना केॅ काटैं छी रात
रोज-रोज सखि सब हमरा चिढ़ाबै
दीदी के पहुना भी हमरा बुलाबै
हम्में तेॅ सरमऽ से कुछछ नै बोलौं
आपनऽ इज्जत केॅ केनां केॅ खोलौं
जेनां लागै जिनगी में कभाते कभात
हे गे सखि पूछें नै मनऽ के बात
हमरा नै भाबै अनधन गहनां
रहि रहि खनकै छै यादऽ में कंगना
हरदम लागलऽ छै जीहऽ में आस
उड़ी केॅ चलली जांव पहुना के पास
आरो करौं मजा सें जिनगी रऽसुरुआत
हे गे सखि पूछें नै मनऽ के बात
ऐतैं दसहरा आरो ऐतैं दीवाली
फगुआ के मस्ती में दिल लागै खाली
चैतऽ-बैसाखऽ में पछिया के बाव
जेठऽ के दुपहरिया में लागै छै ताव
जेना लागै खाली जेतैं येॅ हू बरसात
हे गे सखि पूछें नै मनऽ के बात
बड़ी अरमानऽ सें बाबू बिहलकै
जिनगी में सब टा दुक्खो सहलके
येॅहेॅ सोची हमरा लेॅ जोड़ लकै हाथ
हम्मु रहबै सुक्खऽ सें पहुना के साथ
नै जानौ कब तक होतऽ मुलाकात
हे गे सखि पूछें नै मनऽ के बात