भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोहरऽ बिना / खुशीलाल मंजर

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=खुशीलाल मंजर |अनुवादक= |संग्रह=पछ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखऽ
 है वहेॅ जग्घऽ छेकै
जेकरा हम्में
कहियो भूलेॅ नै पारै छी
भूलेॅ नै पारै छी
हौ बेसाखऽ रऽ ठहाका ई जोयिा
आरेा हौ ई जोरिया में
पछिया हवा रऽ गुदगुदी सें भरलऽ मजाक
तोरा केनांकेॅ बिस्वास दिलैय्यों
कि आय सब फीका लगै छैं
फीका लागै छै
जिनगी केॅ एक लहास समझी केॅ ढोना
अफसोस कि तोहें साथें नैं छऽ
होना केॅ तोहरऽ साथ रहना
हारऽ जिनगी केॅ
पहिलऽ आरो आखिरी अरमान छेलै
तोहरा सायद याद नै होतौं
कि हौ आमऽ के गाछ
जहां तोहें आपनऽ सखी रऽ साथ
अट्ठा गोटी खेलै छेली
आय कत्तेॅ उदास लागै छै
लागै छै
तोरा गेला के बाद
यहां से सबकुछ बिदा होय गेलै
बची गेलऽ छै खाली
तोरऽ याद
आरो यादऽ के बीहड़ वनऽ में
हमरऽ जिनगी के
भटकलऽ होलऽ कहानी