भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रोटी / राजकुमार

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:45, 5 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकुमार |अनुवादक= |संग्रह=टेसू क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोटी-रोटी करतें-करतें, बोटी-बोटी प्रान भेलोॅ
यही एक रोटी के चलतें, तार-तार मुस्कान भेलोॅ
कहिनोॅ ई रोटी अपना सें, अपना भी अंजान भेलोॅ
हमरे रोटी ‘राज’ शुरू सें, हमरा लेली चान भेलोॅ

रोटी तेॅ रोटी पानी भी, हमरा ली आसान कहाँ
महल-महल पर पानी, हमरा लेली मतर बिधान कहाँ
सुखलै ताल-तलैया-कुइयाँ, चापाकल में जान कहाँ
शान बघारै झूठ कहोॅ नी, रहतै अबेॅ ईमान कहाँ

जौं ईमान नैं बचल्हौं, जानी लेॅ मड़रैथौं काल यहाँ
बिक्रम नैं बचथौं, बचथौं तब बिक्रम रोॅ बैताल यहाँ
धरती आग उगलथौं, बगदी जैथौं सबरोॅ चाल यहाँ
सत्य-अहिंसा-दया-धरम रोॅ, बचथौं छुच्छे खाल यहाँ

ऐ लेली मिनती छौं, दोहन छोड़ोॅ हमर्हौ जीयेॅ देॅ
रोटी मत छीनोॅ, जीयैली पानी हमर्हो पीयेॅ देॅ
धरती हरियर रहै, सदा शिव रं अमृत केॅ दीयेॅ देॅ
धरती जौं बचथौं, बचभोॅ ओजोन परत के सीयेॅ देॅ

धरती केॅ छोड़ी, कहिने मंगल के लेॅली उड़ान भेलोॅ
रोटी-रोटी....