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अनुगीत-1 / राजकुमार

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बात लागै छौं त बातोॅ केॅ बढ़ैल्होॅ कहिनें
चान के छाँव में आँखी सें ओढै़ल्होॅ कहिनें

एक चिट्ठी फनूँ होलोॅ छौं अमलतास तोरोॅ
गुलमोहर गीत केॅ शीशा में मढ़ैल्होॅ कहिनें
तोरोॅ नद्दी के तरंगोॅ में किनारा हमरोॅ
बीच रेतोॅ में तरंगोॅ केॅ पढ़ैल्होॅ कहिनें

एक सुनसान बियावान होलोॅ मन पाखी
प्राण-पाखी केॅ जगा रात बिछैल्होॅ कहिनें

‘राज’ अबतक तोरोॅ आसोॅ में कनैली खिललोॅ
फूल पूजा के होलोॅ गंध उड़ैल्होॅ कहिने