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हे मनीषी / राजकुमार

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हे मनीषी भारती रोॅ, आँख के पुतली नमन छौं
ई मतर तोरोॅ लगैलोॅ, आय मुरझैलोॅ चमन छौं

नीर रोॅ बदली कहाँ छौं, नाम्हतें रहल्हौं दुपहरी
गीत रोॅ लहरी हेरैलोॅ, काँपतें रहल्हौं गिलहरी
तीत छौं तरुवर होलोॅ, यूकिलिप्टस छूतें गगन छौं
हे मनीषी भारती रोॅ, आँख के पुतली नमन छौं

छितरलोॅ चतरा खुनैलोॅ गोड़, पगडंडी डगर छौं
हर गली अन्हरोॅ शहर सेॅ गाँव तक, मगरे-मगर छौं
गंध बारुदी लेनें फुफकार के, भरतें पवन छौं
हे मनीषी भारती रोॅ, आँख के पुतली नमन छौं

पुल तोहें पूरब सें पच्छिम के लेली, हँसलोॅ सबेरा
विश्व के मंचोॅ के ऊपर सें, तोरोॅ दर्शन चितेरा
आय बुतरू रं किरिन पर भी, कुटिल-कातिल नयन छौं
हे मनीषी भारती रोॅ, आँख के पुतली नमन छौं

तोंय उतरभोॅ आय फेरु सें, यही छै आस बन्हलोॅ
प्राण प्रासाी रोॅ देभोॅ तोंय त्रान, छै विश्वास बन्हलोॅ
हाय धरती सें सरंगोॅ तक, दूषित वातावरण छौं
हे मनीषी भारती रोॅ, आँख के पुतली नमन छौं