भाग 9 / हम्मीर हठ / ग्वाल कवि
कवित्त
सुनिकै बचन ऐसे बादसाह कासिद के,
कीनो अति कोप, नैन लाल करि लीने हैं।
करिकै सलाह बुलवायो है वकील, ताको-
नाम हुतो मोल्हन, सु आयो याद कीने हैं।
साह फरमायो, जा हम्मीरदेव पास अभी,
ऐसे कह बातें तेरे मंत्री मति छीने हैं।
आपनो तो काल आप हाथ ही खरीद बैठ्यो,
कहा कियो तैनें हाँ हजूर कोप कीने हैं॥81॥
दोहा
महिमा मीर मंगोल की, बाँधि मुस्क लै साथ।
बहु धन रतन जु संग लै, चलि निहुराओ माथ॥82॥
पाय हुकम यह साह को, करि सलाम चलि दीन।
रनथंभौर में जायकै, मोल्हन डेरा कीन॥83॥
कवित्त
खबर पठाई भूप पास, कै वकील आयो,
दिल्ली तें पठायो बादसाह काम वासते।
एती सुनि भूपति बुलाय लियो सभा बीच,
मोल्हन सलाम करि, बैठ गयो आस तें।
महिमा मंगोल चोर साह को तिहारे पास,
कैसे करि राख्यो बेसलाहिन के रासतें।
जाके तेज-त्रास तें गरभ गिरें गरभिन के,
ताने कियो कोप, काढि दैहै या मवास तें॥84॥
दोहा
बाँधि मीर मंगोल कों, बहु धन रतन जु संग।
आप चलौ लै करि अबै, तौ बचिहै यह अंग॥85॥
छन्द
सुनत बात एती नृपति कोप कीनो।
वकीलों को कोई नहीं मार दीनो॥
नहीं तो अबै मारि डारौं पलक में।
महाघोर अपजस जु होगा खलक में॥86॥
सरन मेरी आया जु महिमा मँगोलं।
टरैं नाहिँ मेरे कहे हैं जो बोलं॥
धरम है हमारा प्रसिध छत्रियों का।
मिलै फल वहाँ पै, जु करनी किये का॥87॥
मोल्हन उवाच
कहै फेर मोल्हन सुनो बात राजं।
बचै जान अपनी करौ सो इलाजं॥
तजौ बेगि हठ कों, न हूजै हठीले।
महाबीर जोधा उहाँ हैं गठीले॥88॥
बचै प्रान तो धर्म सब ही बना है।
सभी चीज से प्रान प्यारा घना है॥
मसल है कि धन दै बचाओ सरीरं।
कहूँ बात अच्छी सुनो राज धीरं॥89॥
भूप उवाच
कहै फेर भूपति सुनो हे वकीलं।
रहे डूब अब तुम, कहौ कौन झीलं॥
भई तेरी अक्किल महामंद हीनी।
धर्म खोइ किसने रजाइस है कीनी॥90॥
कहैं लोग सिगरे बड़े धर्म वारे।
बकस धन को राखो तुरत प्रान प्यारे॥
रहै लाज जग में जुरी जे सरीरं।
कहैं साख ऐसी महा जे गँभीरं॥91॥
कहै बोल अपना रहै जो जगत में।
करौ दूरि लज्जा यही सब के मन में॥
इसी बात से बोल टारौं नहीं मैं।
रखौं मीरमहिमा मंगोल सही मैं॥92॥