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जाने क्यूं यूं बेबसी होने लगी / हरकीरत हीर

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जाने क्यूं यूं बेबसी होने लगी
ख़ुश्क आंखों में नमी होने लगी

दर्द की नगरी में जब से बस गए
हर नए ग़म से ख़ुशी होने लगी

चिड़ियाँ अब चहकती घर में नहीं
क़तल क्या ये भी कोख में होने लगी?

जब चले हम इश्क़ का दीया जला
ज़िंदगी में रौशनी होने लगी

फूल तुमने जब हथेली पर रखा
ग़ज़लें पूरी प्यार की होने लगी

दिल धड़कने लग गया है बेवजह
जब से' है बिटिया बड़ी होने लगी

ज़िक्र रांझे का मेरे जब-जब हुआ
हीर दिल में गुदगुदी होने लगी