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महिला दिवस / हरकीरत हीर
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देर रात
शराब पीकर लौटी है रात
चेहरे पर पीड़ा के गहरे निशां
मुट्ठियों में सुराख
चाँद के चेहरे पर भी
थोड़ी कालिमा है आज
उसके पाँव लड़खड़ाये
आँखों से दो बूंद हथेली पे उतर आये
भूख, गरीबी और मज़बूरी की मार ने
देह की समाधि पर ला
खड़ा कर दिया था उसे
वह आईने में देखती है
अपने जिस्म के खरोचों के निशां
और हँसकर कहती है
हुँह
आज महिला दिवस है