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बूँद / मंजुश्री गुप्ता

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मैं एक बूँद!
समय की
प्रवहमान नदी में
जीवन पथ पर
बहती जाती
बहती जाती
खुश हो
निर्झर सा गाती
चट्टानों से टकराती
टूटती
फिर जुड़ जाती
कभी भंवर में फंसती-
उबरती
समतल पर
शांत हो जाती
जीवन पथ पर
बहती जाती
बहती जाती
अनंत महासागर में
विलीन होने को