असफलता / अजित सिंह तोमर
मुद्दत बाद मिलनें पर उसने कहा
बड़े अश्लील हो गए हो तुम
और थोड़े घटिया भी
उसने जवाब दिया
कोई नई बात कहो
इतने दिन बाद मिली हो
और वही कह रही हो
जो दुनिया कहती है
अच्छा ! दुनिया ऐसा कहती है तुम्हारे बारे में?
उसने चौंकते हुए कहा
हाँ !
फिर तुम ये नही हो सकते
तुम तो दुनिया को गलत साबित करने के लिए पैदा हुए थे
मैं गलत थी फिर इस हिसाब से
अच्छा क्या हो गए हो फिर तुम?
मेरे ख्याल से थोड़ा तल्खज़बाँ
थोड़ा बदतमीज़
उसने आत्म समर्पण की मुद्रा में जवाब दिया
हम्म !
आदत अच्छी नही मगर इतनी भी बुरी नही कि
तुम्हारी शक्ल देखना पसन्द न करें कोई
क्या फर्क पड़ता है इन सब बातों से! वो अब दार्शनिक मुद्रा में था
फर्क बस इतना पड़ता
अब हमें हँसी नही आती इन बातों पर
ये क्या कोई कम बड़ा फर्क है तुम्हारे हिसाब से,उसने चिढ़ते हुए कहा
हँसी हमेशा किसी बात पर ही आती है इसलिए हँसी मजबूर चीज़ है थोड़ी
उदास आदमी बेसबब भी हो सकता है
ओह हो ! तो ये बात है
शायर हो गए हो तुम उसने छेड़ते हुए कहा
शायर हुआ नही जाता है आदमी हो जाता है
मतलब इश्क विश्क टाइप उसने हँसते हुए पूछा
छोड़ो ये बातें अच्छा ये बताओं
दिलचस्पी का मरना किस तरह देखती हो तुम
उसने कहा ठीक वैसे जैसे तुम्हें देखकर खुद को देखती हूँ
ये ठीक बात कही तुमनें तमाम बातों के बीच
अब एक मेरे भी एक सवाल का जवाब दो
प्यार बदलता क्यूँ है
प्यार बदलता नही है स्थिर होकर सूख जाता है
ऊँहूँ ! बात जमी नही कुछ
इतने कमजोर तर्क कब से करने लगे?
चलो ! अपनी वही प्रेम कविता सुनाओं
जिसे पढ़कर प्यार दुनिया की सबसे पवित्र चीज़ लगता था
उसने कहा,याद नही अब तो
तुम में सच अब बेहद घटिया हो गए हो
अश्लील भी
इसलिए नही कि दुनिया कहती है
इसलिए अब तुम अपनी प्रिय कविता भूल गए हो
हम्म !
फिर कोई सवाल जवाब नही हुआ दोनों मध्य
दोनों एक दूसरे को देखते रहें थोड़ी देर
और विदा हो गए
अपनी अपनी असफलता पलकों पर लेकर।