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ये क्या यहाँ चारों तरफ / अमरेन्द्र

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ये क्या यहाँ चारों तरफ
हैं गालियाँ चारों तरफ

इक आदमी दिखता नहीं
परछाइयाँ चारों तरफ

जब टाँग टूटी एक है
तो खाइयाँ चारों तरफ

कुछ नाम तो पाया नहीं
बदनामियाँ चारों तरफ

जब हो जरूरत लो बुला
हम हैं मियाँ चारों तरफ

अय रात की काली घटा
दे बिजलियाँ चारों तरफ

अमरेन्द्र फिर भी है खड़ा
हैं आँधियाँ चारों तरफ।