भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहाँ तक जायेगी झंकार ? / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:36, 20 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= नाव सिन्ध...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहाँ तक जायेगी झंकार ?
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?

प्रेमी, भक्त, विदग्ध वियोगी
जिसमें भी व्याकुलता होगी
क्या न वही बनकर सहभोगी छेड़ेगा ये तार

जाति, धर्म, भाषा से उठकर
मानव-मन की हर धड़कन पर
गूँजेगें क्या मेरे ये स्वर युग-युग इसी प्रकार?

जग तो सच्चा भी है झूठा
जो आँखें मिलते ही रूठा
किन्तु सुना है, काव्य अनूठा रहता सदाबहार

कहाँ तक जाएगी झंकार
घर-आँगन, पुर, प्रांत, देश तक या उसके भी पार?