Last modified on 20 अप्रैल 2017, at 10:06

''सीते! लौट अवध में आओ / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:06, 20 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=सीता-वनवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ

मातायें सब हैं दुखियारी
बहुओं को पल-पल है भरी
आये लज्जित पुर नर नारी इनकी ग्लानि मिटाओ

देख तुम्हें वन में यूँ रहते
किसके दृग से अश्रू न बहते!
सभी एक स्वर से हैं कहते--'सीता को घर लाओ '

'ली जो राजधर्म की दीक्षा
मैं उसकी दे चुका परीक्षा
प्रिये! बहुत कर चुकी प्रतीक्षा और न अब दुःख पाओ'

सीते ! लौट अवध में आओ
बीते जीवन की दुःख-गाथा मन से दूर हटाओ