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सूर्य / कुमार कृष्ण

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तुम आये गाय के थन से उतर आया दूध
राजा के हाथ की कैंची चीरने लगी
अनगिनत उद्घाटन
दिन भर जंग लड़ता रहा एक आदमी
दूसरे आदमी ने प्रार्थना की तुम्हारे स्वागत में
तीसरे ने तालियाँ बजाईं
राजा के शरीर की मालिश में
बिता दिया पूरा दिन चौथे आदमी ने
तुम्हारे जाने से पहले ही
राजा सो गया।
कविता और तमाशागर

मैंने अपनी एक कविता में
अनगिनत घर बो दिये
आदमियों की बेहतरीन फसल की प्रतीक्षा में
मजबूत पेड़ों की प्रतीक्षा में
एक कविता में बो डाले बेशुमार जंगल
खतरे के निशान को पार करती हुई
तमाम नदियों को रोकने की कोशिश की
मैंने एक कविता में।
मैं उस कविता को लेकर
स्कूली बच्चों के पास गया
उन्होंने कहा-
"आदत पड़ चुकी है हमें देशभक्ति के गीत गाने की
तुम अपनी कविता किसी तमाशागर को दे दो।"
तमाशागर पगड़ी बाँध रहा था
जब मैं उसके पास पहुँचा
मेरी कविता को सुनकर बोला-
मुझे ठीक करना है अपना फटा हुआ डमरू
तुम एक काम करो,
आज मेरे साथ चलो और देखो
कैसे खिंचे चले आते हैं लोग
वैसे मैं हर रोज एक-सी भाषा बोलता हूँ।

बहुत कुछ एक-सा है तुम्हारा और मेरा काम
हम दोनों करते हैं भाषा का धन्धा
एक भाषा करती है लोगों को अन्धा
दूसरी देती लोगों को कन्धा
यह दूसरी बात है कि हमारे शब्दों पर बजने वाली
तालियों की गरमाहट कम हो गई है
हम दोनों इसके बारे में
मिलकर सोचेंगे किसी एक दिन
तुम गलत समय पर आये हो
यह दफ्तरों में
ठण्डे भोजन को पेट के सुपुर्द करने का वक़्त है,
मुझे इसी मौके के लिए डमरू तैयार करना है।