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सुरंग से गुजरकर देखें / कुमार कृष्ण

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उस सुरंग से गुजरने का मतलब है
गोल अँधेरे की गिरफ़्त में आ जाना
अँधेरा नहीं जानता
रोशनी के बदरंग पेड़ों की चमक
नहीं जानता सुरंग के ऊपर चलने वाले
सूरज के घोड़ों की शक्ल
पर जनता है-
सुरंग के ऊपर लेटा पहाड़,
फट रहा है
रिस रहा है
गल रहा है।

कभी-कभार आने लगी हैं
बिदके हुए घोड़ों की आवाज़ें
सुरंग के अन्दर
उस सुरंग में लगातार सोते हुए
महसूस किया है कई बार चरनदास मोची ने
पहाड़ का फटना
पहाड़ फटने का मतलब
पूरे शहर का फटना है
कई बार कर चुका जिसका जिक्र
आते-जाते लोगों से
कीमती बूटों में
पूरे जोर से कील ठोकता हुआ
सुरंग के बाहर बैठा चरनदास।

सुरंग में प्रवेश करने से पहले लोग
डालते हैं एक नजर चरनदास पर
दूसरी जूतों पर
तीसरी नजर में स्वयं को
कर देते हैं लम्बी सुरंग के हवाले।

घर पहुँचने की हड़बड़ी में
भूल जाते हैं वे
चरनदास की बात
आधी सुरंग में पहुँचकर
उलटे-सीधे कदमों से
निकल आती जब कोई कील
जूते से बाहर
याद आता तब चरनदास
पहाड़ फटने की बात
तेज रफ्तार से भागते पाँव में धँसती
पूरी ताकत के साथ
जूते की कील
सुरंग से निकलकर कम होता
पहाड़ फटने का भय
बढ़ने लगता
पाँव का दर्द
चरनदास भरता पहाड़ फटने का भय
एक और जूते के अन्दर।