भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं जिनके नयनों में लाज / कृष्ण मुरारी पहारिया

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 23 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्ण मुरारी पहारिया |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं जिनके नयनों में लाज
वही आसन पर रहे विराज

              सुनेगा कौन तुम्हारी व्यथा
              कहोगे किससे दुख की कथा
              रहो सहते चुप रहकर यथा

अकेले अपनी पीड़ा आज

              कहाँ हैं सुख के स्वर स्वच्छन्द
              भाव है किसके कर में बन्द
              टूटते हैं बन-बनकर छन्द

गिरी है कवि के मन पर गाज

18.08.1962