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गम्भर (चार) / कुमार कृष्ण
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भागते हुए भी नहीं भूलती गम्भर
पहाड़ों को प्यार करना
नहीं भूलती अपना रास्ता
अपना कर्म
अपना धर्म
वह जानती है अच्छी तरह-
रास्तों को तोड़ना, मोड़ना
उसे आते हैं बनाने नये-नये रास्ते
गम्भर है पहाड़ की रिसती हुई तकलीफ़
बाँटती है पीड़ा में भी
प्रेम के पेड़े
बुझाती है प्यास।