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भनसाँ बैठल मिरिगालोचन / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राम-लक्ष्मण शिकार खेलने वन में जाते हैं। वहीं उन्हें प्यास लगती है। पानी कहीं नहीं मिलता। अंत में, पूर्णकलश लिये एक कन्या से इन लोगों की भेंट होती है। प्यास बुझाने के बाद कन्या का परिचय पूछने पर पता चलता है कि वह तो राम की मँगेतर है।

इस लोक गीत में लोकमानस ने ऐतिहासिक तथ्य से सर्वथा भिन्न कल्पना की है।

भनसाँ<ref>रसोईघर</ref> बैठल मिरिगालोचन<ref>मृगलोचन</ref>, मिरिगा<ref>मृग</ref> उतरो<ref>उतार दिया; रख दिया</ref> दिय हे।
हथियाँ साजल राजा दसरथ, घोरियाँहि<ref>घोड़े को</ref> परल लगाम झिलिमिलि हे॥1॥
हथियाँ चढ़ै राजा दसरथ, घोरियाँहि चढ़ै राम हे।
डाढ़ियाँहिं<ref>डाँड़ी पर; पालकी पर</ref> चढ़ि लछिमन, चलि भेल सहिर<ref>सालि</ref> सिकार<ref>शिकार</ref> हे॥2॥
सहिर खेलैते<ref>खेलते हुए</ref> लछिमन घामल<ref>पसीने से तर हो गये</ref>, बैरी बन लागल पिआस हे।
हिरअह<ref>देखते हैं, मिला. हियाना=दूर देखना</ref> सेॅ लछिमन बिरछि<ref>वृक्ष</ref> तरे<ref>नीचे</ref>, नाहा<ref>नहीं</ref> देखौं कुआँ पानी हे।
हारिनी<ref>हिरनी</ref> नाहा देखौं सरोबर घाट हे॥3॥
देखैत<ref>देखते हुए</ref> देखलाँ<ref>देखा</ref> हमें कैना<ref>कन्या</ref> कुमारी, कलस भरल निरमल हे।
पनिया पिलाये<ref>पिला-कर</ref> हिरधअ<ref>हृदय</ref> जुरायल<ref>जुड़ाया</ref> पूछे लागल राम लछिमन दिलहुँ के<ref>दिल की</ref> बात हे॥4॥
कौने रीखि केरऽ नतनी<ref>नातिन; लड़की की लड़की</ref> हे पोतिया<ref>पोती</ref>, कौने रीखि केरऽ धिआ हे।
कौने रीखि धिआ पुतौआ<ref>पतोहू</ref>, कौने कुलँ<ref>कुल</ref> भै<ref>हुआ</ref> बिहा<ref>विवाह</ref> हे॥5॥
हिमतलऽ<ref>हिमालय के नीचे रहने वाले; ऋषि-विशेष</ref> रीखि केरऽ नतनी पोतिया, जलबा<ref>ऋषि-विशेष; जनक</ref> रीखि केरऽ धिया हे।
राजा दसरथ कुल भइ केलै बिहा, सामी हमरे सीरी राम,
देवर सीरी लछिमन हे॥6॥
ऐही<ref>इस पार</ref> पारे जोए<ref>देखते हैं; खोजते हैं</ref> हंसा चकेबा, पारे जोए सीरी राम हे।
पंथ बइसिए<ref>बेठकर</ref> सता धरमऽ<ref>धर्म</ref> पुकारे, सामी हमरे सीरी राम हे॥7॥

शब्दार्थ
<references/>